"कौन है गुरु, ज्ञानी और सद्गुरु"
 


"कौन है गुरु, ज्ञानी और सद्गुरु


हम सभी को पता है कि मिश्री मीठी होती है। आप मुँह मे मिश्री डालकर चाहे घूमे, फिरें,बैठ जाये चाहे लेट जाएँ, पर जब तक मुँह मे मिश्री है तब तक मुँह मीठा रहेगा जी। इसी प्रकार सुमिरन है, जब हम चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते, यानि हम जिस स्थिति में भी रहें हो, सुमिरन करते रहेंगे, तो उस मिश्री की तरह सुमरन नाम का मिठास हमारी आत्मा को आता ही रहेगा। क्योंकि वास्तविकता में तो सुमिरन शरीर की नहीं बल्कि आत्मा की खुराक है। 
सांसारिक जीवन में पिता-पुत्र, माता-पुत्र या पुत्री, पति-पत्नी वगैरह के रिश्ते होते हैं। इसके सिवाए संसार में गुरु-शिष्य का एक ऐसा संबंध भी है, जिसमें गुरु को समर्पित होने के बाद में शिष्य पूरा जीवन उनके प्रति समर्पित रहता है व अपने गुरु के प्रति परम विनय में रहकर, वह गुरु की सभी आज्ञाओं का अनुपालना करते हुए अंत में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करता है। 
वर्तमान में गुरु के बारे में अनेक व अलग-अलग मान्यताएँ हैं इसलिए लोग बहुत भ्रमित भी हो गये हैं कि सच्चे गुरु को कैसे खोजें। और सही भी है सबका प्रश्न, कियों की कुछ गुरुओं ने अपनी छवी को धूमिल जो किया है। खैर सभी गुरु एक जैसे नही होते। वैसे साधारणतया लोग गुरु, सतगुरु, और ज्ञानी को एक ही कक्षा में रखते हैं। जब कि ऐसा नही है। 
एक राज़ की बात बताऊँ, जीव मात्र में, कण-कण में भगवान बिराजते हैं,आप पूरे जगत् के तमाम जीवों को गुरु बनाएँ, जिसके पास से जो कुछ जानने को मिले वह सीखें, जानें, स्वीकारें। वहाँ सभी से हम कुछ भी संपादन कर सकते हैं। गुरु संसार में हमें सांसारिक धर्म सिखलाते हैं, क्या अच्छा करें और कौन-सा बुरा छोड़ दें, वे सारी शुभाशुभ की बातें हमें समझाते हैं। 
अब संसार तो रहेगा ही और हमें तो मोक्ष में जाना है, तो उसके लिए हम यूं कह सकते हैं कि"हमें एक ज्ञानीपुरुष अलग से चाहिए! जो अपने ज्ञान की धारा से हमे निर्वधक बहा कर तार-तार कर दे।" ये वही ज्ञानीपुरुष हैं जो भगवान पक्षी कहलाये जाते हैं। 
सद्गुरु वहीं विराजमान हैं, जहाँ वाणी, वर्तन और विनय मनोहर हों, वहाँ श्रद्धा बैठानी ही नहीं होती, श्रद्धा बैठ ही जानी चाहिए। सदगुरु जब मिल गए, तब किसी योग्यता की आवश्यकता ही नहीं होती। सदगुरु मिल गए, वही उसका बड़ा पुण्य कहलाता है। 
इसलिए ये सही भी है कि, 
"गुरु बिन ज्ञान कहां, गुरु बिन मान कहां, 
"गुरु ने दी राह जहां, ज्ञान का भंडार मिला वहां"।"