"वाक़ई ख़ास होते है कवि और कविता "
 

 



कविता कवि के लिए ही नही अपितू प्रत्येक व्यक्ति की अभिव्यक्ति का ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा मन की सहज व सरल भावनाओं को सुंदरता से व्यक्त किया जाता है। 
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने बड़े ही सुंदर शब्दों में कविता की व्याख्या की है कि- "हृदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।" हज़ारी प्रसाद द्विवेदी के मतानुसार- "कविता का लोक प्रचलित अर्थ वह वाक्य है जिसमें भावावेश हो, कल्पना हो, लालित्य हो, पद हो तथा प्रयोजन की सीमा समाप्त हो चुकी है।"
दरअसल, कविता वह है जिसमें कविता में भाव तत्व की सर्वप्रथम प्रधानता होती है। रस को हमेशा से ही कविता की आत्मा माना जाता रहा है। कविता के अवयवों में आज भी इसका स्थान सर्वश्रेष्ठ ही है। हालांकि प्राचीनकाल में कविता में छंद और अलंकारों को महत्वपूर्ण माना गया था, लेकिन इसको भी झुठलाया नही जा सकता कि, आधुनिक काल में कविताएं छंद और अलंकारों से मुक्त हो गईं। 
कविताओं में छंदों और अलंकारों की अनिवार्यता लगभग ख़त्म सी हो गई, और नई कविता का चलन शुरू हो चुका है। इस तरह अब वर्तमान में तो मुक्त छंद या छंदहीन कविताओं की नदियां बहने सी लगीं हैं, और मुक्त छंद कविताओं में पद की तो आवश्यकता ही नहीं होती, सिर्फ़ मात्र सिर्फ एक भाव प्रधान तत्व ज़रूर रहता है।
आज की कविता में मनुष्य के मन में हिलोरें लेने वाली भावनाएं, उसके मस्तिष्क में उठने वाले विचार, कल्पनाएं और अनुभव प्रभावी हो गए और छंद लुप्त से हो गए। हां, मगर ये भी सर्वयापी सत्य है कि इन कविताओं में भी एक मधुर लय होती है, वो है भावों की लय, जो कवि और पाठकों की खास कड़ी है, जो इन दोनों के तालमेल को बांधे रखती है। तभी तो यूहीं थोड़े ही कहा गया है कि वाकई खास होते है कवि और कविता।