मंजिलों की ख्वाईश तो हर
किसी के पास होती है
जैसे मेरी ख्वाईश थी
एक मंजिल को पाने की
अपने और अपने
परिवार के लिए,
खुशियाँ बटोरनें की
पर
अनजाने में उन खुशियाँ के लिए
कुछ अपने पीछे छोड़ गया था
कुछ सपनों को भी तोड़ गया था
फिर भी,
मैंने आगे का सोचा था
और
समय के हिसाब से
बदलते रहा था
शौक जो,
मंजिल के सफर में पूरे कियें थे मैंने
पर उन
शौक को भी मैं खत्म कर बैठा था
जब मैंने वापिस उस
मंजिल के पीछे आने
का सोचा था
और
फिर से कुछ टूटे हुए
सपनों को
जोड़ने का सोचा था !!!
जोड़ने का सोचा था !!!